Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharajप्रेमानंद जी महाराज: इस धरती पर हर जीव किसी न किसी रूप में मोह और ममता से प्रभावित है। जैसे एक छोटी सी चींटी अपने अंडों को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उनकी देखभाल करती है, वैसे ही अन्य जीव भी अपने प्रेम में बंधे होते हैं। इंसान की बात करें तो हम सभी अपने जीवन में प्रेम और अपनापन की खोज में रहते हैं, लेकिन यह खोज अक्सर हमें दुख की ओर ले जाती है। जब हम ममता को इंसान से जोड़ते हैं, तो वह अपेक्षाओं और इच्छाओं में बंध जाती है। वहीं, जब यह ममता भगवान से जुड़ती है, तो यह हमें अनंत आनंद देती है। संत प्रेमानंद जी का कहना है कि इस संसार में रिश्ते स्वार्थ और आकर्षण पर आधारित होते हैं, जबकि ईश्वर के साथ संबंध केवल प्रेम और विश्वास पर टिके होते हैं।
मोह-ममता और दुख का संबंध मोह-ममता अक्सर क्यों दुख का कारण बनती है?
जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम अपेक्षाएं भी रखते हैं। जब सामने वाला व्यक्ति हमारे साथ होता है, तो सब कुछ अच्छा लगता है, लेकिन जैसे ही वह दूर होता है, हमारी उम्मीदें टूट जाती हैं और यही टूटन हमें दुखी कर देती है। याद रखें, इंसान का मन चंचल होता है। आज वह आपको चाहता है, कल वह उपेक्षा कर सकता है। लेकिन भगवान का साथ हमेशा स्थायी होता है। उनसे जुड़ी ममता कभी धोखा नहीं देती।
सेवा भाव का महत्व
सेवा भाव इंसान से जुड़ने का सबसे सही तरीका
प्रेमानंद जी का कहना है कि इंसान से अपेक्षा मत रखो, बस सेवा भाव रखो। सच्ची सेवा वही है जिसमें स्वार्थ न हो। यदि सेवा के बाद हम प्रशंसा की उम्मीद करने लगते हैं, तो वह अधूरी रह जाती है। सच्ची सेवा वह है, जिसके बाद सेवक भूल जाए कि उसने कुछ किया था। यही भाव भगवान को प्रसन्न करता है और मनुष्य को हल्का बना देता है।
स्वार्थ और रिश्तों का सच इस मायावी संसार में रिश्तों का आधार केवल स्वार्थ
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि इस धरती पर कोई भी स्थायी रूप से अपना नहीं है। लोग धन, बुद्धि, और आकर्षण के आधार पर आपसे जुड़ते हैं। जैसे ही ये गुण समाप्त होते हैं, लोग दूरी बना लेते हैं। यही कारण है कि इंसान अंततः अकेलापन महसूस करता है। लेकिन जब मनुष्य प्रभु से जुड़ता है, तो उसकी यह भूख खत्म हो जाती है कि कोई उसे प्यार करे या सम्मान दे। उसका मन भीतर से संतुष्ट हो जाता है और वह दूसरों से बिना किसी अपेक्षा के केवल सेवा और दया का भाव रखता है।
ईश्वर प्रेम और मृत्यु मृत्यु को भी निर्भय बना देता है ईश्वर प्रेम
संसार का प्रेम हमें मृत्यु से डराता है, लेकिन भगवान का प्रेम मृत्यु को उत्सव बना देता है। सामान्य व्यक्ति मृत्यु के समय घबराता है, लेकिन भक्त जानता है कि मृत्यु का मतलब है प्रभु से मिलन। इसलिए संत अपने अंतिम समय में भी मुस्कुराते हुए जाते हैं।
विवेक और मार्ग का चुनाव सही या गलत मार्ग चुनने का मनुष्य को मिला विवेक
भगवान ने मनुष्य को जीवन और विवेक दिया है। अब यह उसके ऊपर है कि वह धर्म और अध्यात्म का मार्ग चुने या भोग-विलास का। अध्यात्म का मार्ग कठिन है, लेकिन अंततः वही जीवन को सफल बनाता है।
संगति और विचारों की शक्ति संगति और विचारों में बहुत बड़ी शक्ति
प्रेमानंद जी बार-बार यह स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य जैसा सुनता और देखता है, वैसा ही बन जाता है। बुरी संगति मन को गंदा करती है, जबकि सत्संग मन को शुद्ध करता है। यदि बुरे विचार मन में आएं, तो तुरंत भगवान का नाम जपना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से मन की बुरी प्रवृत्तियां मिटने लगती हैं।
परिवार और बच्चों के लिए प्रेमानंद जी की सीख प्रेमानंद महाराज की परिवार और बच्चों के लिए जरूरी सीख
प्रेमानंद जी का मानना है कि माता-पिता को अपने बच्चों से मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। कठोरता से पेश आने पर बच्चे अपनी बातें छिपाने लगते हैं, जो आगे चलकर तनाव का कारण बनती हैं। यदि बच्चे अपने माता-पिता से खुलकर बात कर सकें, तो उनका मानसिक विकास बेहतर होता है। इसलिए परिवार में बच्चों को मित्रवत वातावरण दें ताकि वे निडर होकर अपनी बातें कह सकें।
जीवन का सत्य यही है कि यह क्षणभंगुर है। संसार का प्रेम क्षणिक है और हमेशा दुख से जुड़ा रहता है। असली सुख केवल भगवान की शरण में है। प्रेमानंद जी का संदेश यही है कि थोड़े कष्ट और त्याग के साथ अध्यात्म की ओर बढ़ो। यह साधना कठिन जरूर है, लेकिन अंत में यही जीवन को सफल, शांत और आनंदमय बनाती है।
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